Sunday, August 30, 2009
Wednesday, August 5, 2009
बरसों से बैंक में सड़ रहे हैं सैनी समाज के करोड़ों रुपए
सूरत-ए-हाल : शामलात की जमीन अधिग्रहण के मुआवजे का
राजेन्द्र सैनी / समाचार सम्पादक
रोहतक। अधिग्रहण स्वरूप मिली मुआवजा राशि को लेकर जमीन के हिस्सेदारों में चल रही गुटबाजी के चलते करोड़ों रुपए पिछले कई दशकों से बैंक में पड़े सड़ रहे है। चूंकि कोई भी गुट नरमी नहीं बरत रहा है इसलिए मामला कानूनी पेचिदगियों से लबरेज होकर कोर्ट में ही घूम रहा है। यही वजह है कि निकट भविष्य में भी इस धनराशि के बैंक से निकलने की संभावना नजर नहीं आ रही है। दरअसल प्रदेश सरकार ने इम्पू्रवमैंट ट्रस्ट के लिए मुंडलयान मोहल्ला स्थित शामलात की 11 बीघे जमीन को अधिग्रहीत तो कर लिया था मगर इसका मुआवजा प्रदान नहीं किया। मुआवजा लेने के लिए जमीन के हिस्सेदारों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और वर्ष 1987 में हाईकोर्ट ने सम्बंधित विभाग को शामलात जमीन के मालिकों को इसका मुआवजा 6 महीने के भीतर देने के आदेश जारी कर दिए। मगर इस समयावधि में भी मुआवजा राशि वितरित नहीं की गई। तत्पश्चात वर्ष 1993 में तत्कालीन राजस्व अधिकारी ने जमीन के अवार्ड घोषित कर मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू की। इसी दौरान कुछ साझेदारों की आपसी रणनीति के तहत महाराजा शूर सैनी मैमोरियल ट्रस्ट अस्तित्व में आया और ट्रस्ट ने राजस्व अधिकारी के समक्ष अपील कर मुआवजे की राशि को ट्रस्ट के खाते में जमा करवाने का अनुरोध कर डाला। मगर इस अपील से शामलात जमीन •े अन्य हिस्सेदार खुश नहीं थे इसलिए उन्होंने भी राजस्व अधिकारी के समक्ष अपनी अर्जी डाल मुआवजे की राशि को ट्रस्ट की बजाए सभी साझेदारों को अलग-अलग वितरित करने की गुहार लगा डाली। इस तरह मामला कानूनी तिकडमबाजियों में उलझ गया और राजस्व अधिकारी ने अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस मामले को कोर्ट में रेफर कर दिया। ट्रस्ट के पदाधिकारियों का कहना था जो साझेदार अलग-अलग मुआवजे की बात कर रहे हैं वे तो पहले ही अपने हिस्से की जमीन बेच चुके हैं। इसलिए उनको मुआवजा देने का कोई तुक हीं नहीं बनता। इसके विपरित विरोधी साझेदारों का कहना था चूँकि वे शामलात की जमीन में हिस्सेदार है इसलिए मुआवजा उनके नाम से ही मिलना चाहिए। मामला कोर्ट में जाने के बाद इम्पू्रवमैंट ट्रस्ट ने मुआवजा राशि को भी कोर्ट में जमा करवा दिया। जहां से होती हुई यह राशि यूनियन बैंक में जमा हो गई। कई वर्षों बाद यह मामला आखिरी दौर में पहुंचा और वर्ष 2007 में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश की अदालत ने ट्रस्ट की अपील को खारिज करते हुए मुआवजा राशि को शामलात जमीन के मालिकों के नाम उनके हिस्से मुताबिक वितरित करने के आदेश जारी कर दिए। ट्रस्टियों को यह फैसला पसंद नहीं आया और उन्होंने इसकी अपील अगली अदालत में करते हुए निचली अदालत के आदेशों को चुनौती दे डाली। फिलहाल मामला कोर्ट में विचाराधीन है और अधिग्रहीत जमीन के मुआवजे के करोड़ों रुपए फिक्स डिपोजिट के रूप में बैंक में पड़ा हैं।