Sunday, August 30, 2009

लाड़वा (कुरुक्षेत्र)। धर्मस्थली कुरुक्षेत्र का लाड़वा हलका सैनी बिरादरी के लिए एक बार फिर हरियाणा विधानसभा के द्वार खोल सकता है। परिसीमन आयोग की नई संरचना के चलते इस बार अस्तित्व मेंं आया लाड़वा प्रदेश का संभवतया ऐसा विधानसभा हलका है जहां आगामी विधानसभा चुनाव में हर प्रत्याशी के भाग्य का फैसला सैनी बिरादरी के हाथों में होगा। करीब सवा लाख मतदाताओं वाली इस विधानसभा में अकेले सैनी बिरादरी के 30 हजार के करीब वोट है, जो यदि एकजुट हो गए तो किसी भी सैनी प्रत्याशी को विधानसभा का प्रतिनिधित्व देने में निसंदेह कारगर साबित हो सकते हैं मगर पूर्व की भांति यह हलका भी अब धीरे-धीरे कर सैनी नेताओं की रणभूमि का गवाह बनता नजर आ रहा है। विधानसभा चुनावों की आहट के बाद जिस तरह से सैनी बिरादरी के नेताओं की सरगर्मी इस हलके में एकाएक बढ़ी है, वो आगे चलकर निश्चित तौर पर सैनी समाज के भविष्य पर सवालिया निशान लगा सकती है। जहां तक सैनी बिरादरी के नेताओं की टिकट की दावेदारी की बात है तो अभी तक पांच नेताओं का नाम उभरकर सामने आ है, जिनमें से तीन कांगे्रस (साहिब सिंह सैनी, कैलाशो सैनी व हरिकेश सैनी) तथा एक बसपा (शशि सैनी) व एक भाजपा (रमेश सैनी) से हैं। सबसे पहले बात करते हैं साहिब सिंह सैनी की। साहिब सिंह थानेसर से विधायक रहे हैं और फिलहाल कुरुक्षेत्र जिला कांग्रेस के वर्किंग प्रेजीडेंट के साथ-साथ हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के संगठन सचिव की जिम्मेवारी भी निभा रहे हंै। परिसीमन आयोग ने जब से लाड़वा हलके का सृजन किया है तभी से वे इस हलके में सक्रिय है और निरंतर संभाएं कर खासतौर पर सैनी बिरादरी को लामबंद करने में जुटे हैं। साहिब सिंह के करीबियों का कहना है कि मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा का इशारा मिलने के बाद से ही उन्होंने अपना चुनाव प्रचार करने में जुटे हुए हैं। वैसे भी पिछले दिनों उनके एक समर्थक के घर पधारे हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष फूलचंद मुलाना ने भी हाईकमान से उनकी टिकट के लिए वकालत करने के स्पष्ट संकेत दिए थे। इतना ही नहीं पुराने कांग्रेसी होने का फायदा भी उन्हें मिल सकता है। यही वजह है कि साहिब सिंह अपनी टिकट को लेकर आश्वस्त एवं सशक्त नजर आ रहे हैं और पूरी तैयारी के साथ हलके का दौरा करने में व्यस्त हैं। यहां से कांग्रेस टिकट के लिए एक दूसरी मजबूत दावेदार है पूर्व सांसद कैलाशो सैनी, जो विगत लोकसभा चुनाव में ही इनेलो छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुई है। सैनी बिरादरी में खासा प्रभाव रखने वाली कैलाशो ने हालांकि अभी तक खुलकर लाड़वा से अपनी दावेदारी पेश नहीं की है। मगर फिर भी लाड़वा क्षेत्र के लोगों से लगातार सम्पर्क में रहने की वजह से यहां से उनकी दावेदारी की चर्चाएं अब आम हो गई है।

Wednesday, August 5, 2009

बरसों से बैंक में सड़ रहे हैं सैनी समाज के करोड़ों रुपए

सूरत-ए-हाल : शामलात की जमीन अधिग्रहण के मुआवजे का

राजेन्द्र सैनी / समाचार सम्पादक

रोहतक। अधिग्रहण स्वरूप मिली मुआवजा राशि को लेकर जमीन के हिस्सेदारों में चल रही गुटबाजी के चलते करोड़ों रुपए पिछले कई दशकों से बैंक में पड़े सड़ रहे है। चूंकि कोई भी गुट नरमी नहीं बरत रहा है इसलिए मामला कानूनी पेचिदगियों से लबरेज होकर कोर्ट में ही घूम रहा है। यही वजह है कि निकट भविष्य में भी इस धनराशि के बैंक से निकलने की संभावना नजर नहीं आ रही है। दरअसल प्रदेश सरकार ने इम्पू्रवमैंट ट्रस्ट के लिए मुंडलयान मोहल्ला स्थित शामलात की 11 बीघे जमीन को अधिग्रहीत तो कर लिया था मगर इसका मुआवजा प्रदान नहीं किया। मुआवजा लेने के लिए जमीन के हिस्सेदारों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और वर्ष 1987 में हाईकोर्ट ने सम्बंधित विभाग को शामलात जमीन के मालिकों को इसका मुआवजा 6 महीने के भीतर देने के आदेश जारी कर दिए। मगर इस समयावधि में भी मुआवजा राशि वितरित नहीं की गई। तत्पश्चात वर्ष 1993 में तत्कालीन राजस्व अधिकारी ने जमीन के अवार्ड घोषित कर मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू की। इसी दौरान कुछ साझेदारों की आपसी रणनीति के तहत महाराजा शूर सैनी मैमोरियल ट्रस्ट अस्तित्व में आया और ट्रस्ट ने राजस्व अधिकारी के समक्ष अपील कर मुआवजे की राशि को ट्रस्ट के खाते में जमा करवाने का अनुरोध कर डाला। मगर इस अपील से शामलात जमीन •े अन्य हिस्सेदार खुश नहीं थे इसलिए उन्होंने भी राजस्व अधिकारी के समक्ष अपनी अर्जी डाल मुआवजे की राशि को ट्रस्ट की बजाए सभी साझेदारों को अलग-अलग वितरित करने की गुहार लगा डाली। इस तरह मामला कानूनी तिकडमबाजियों में उलझ गया और राजस्व अधिकारी ने अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस मामले को कोर्ट में रेफर कर दिया। ट्रस्ट के पदाधिकारियों का कहना था जो साझेदार अलग-अलग मुआवजे की बात कर रहे हैं वे तो पहले ही अपने हिस्से की जमीन बेच चुके हैं। इसलिए उनको मुआवजा देने का कोई तुक हीं नहीं बनता। इसके विपरित विरोधी साझेदारों का कहना था चूँकि वे शामलात की जमीन में हिस्सेदार है इसलिए मुआवजा उनके नाम से ही मिलना चाहिए। मामला कोर्ट में जाने के बाद इम्पू्रवमैंट ट्रस्ट ने मुआवजा राशि को भी कोर्ट में जमा करवा दिया। जहां से होती हुई यह राशि यूनियन बैंक में जमा हो गई। कई वर्षों बाद यह मामला आखिरी दौर में पहुंचा और वर्ष 2007 में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश की अदालत ने ट्रस्ट की अपील को खारिज करते हुए मुआवजा राशि को शामलात जमीन के मालिकों के नाम उनके हिस्से मुताबिक वितरित करने के आदेश जारी कर दिए। ट्रस्टियों को यह फैसला पसंद नहीं आया और उन्होंने इसकी अपील अगली अदालत में करते हुए निचली अदालत के आदेशों को चुनौती दे डाली। फिलहाल मामला कोर्ट में विचाराधीन है और अधिग्रहीत जमीन के मुआवजे के करोड़ों रुपए फिक्स डिपोजिट के रूप में बैंक में पड़ा हैं।